जब दिल्ली पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की और नौ स्टेडियमों को किसानों के लिए अस्थाई जेल बनाने की मांग आप सरकार से की तो अरविंद केजरीवाल ने इससे इनकार कर दिया. उल्टे दिल्ली सरकार ने शुक्रवार को विरोध-प्रदर्शन कर रहे किसानों का स्वागत ‘अतिथि' के तौर पर करते हुए उनके खाने, पीने और आश्रय का बंदोबस्त कर दिया. दिल्ली के राजस्व मंत्री कैलाश गहलोत ने तो उत्तरी दिल्ली और मध्य दिल्ली के जिला अधिकारियों को किसानों के आश्रय, पेयजल, मोबाइल टॉयलेट के साथ ही ठंड के महीने और महामारी को देखते हुए उपयुक्त व्यवस्था करने के भी निर्देश दिए. दिल्ली जल बोर्ड के उपाध्यक्ष राघव चड्ढा ने कहा कि उन्होंने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के निर्देश पर संबंधित स्थल पर पेयजल की व्यवस्था की है.
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दरअसल, अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी AAP नहीं चाहती कि किसानों के गुस्से का सामना उन्हें करना पड़े. इसके पीछे उनकी मंशा भी साफ है. आप पंजाब में अब नंबर दो की पार्टी बन चुकी है. 2017 के विधानसभा चुनावों में पंजाब की 117 सदस्यीय विधान सभा में आप ने 23.7 फीसदी वोट हासिल कर कुल 20 सीटें जीती थीं.
वहीं पंजाबी और पंजाबियत की बात करने वाली शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी गठबंधन को चुनावों में हार का सामना करना पड़ा था. इन दोनों दलों के गठबंधन (एनडीए) को कुल 50 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था, जबकि कांग्रेस ने 31 सीटों का फायदा लेते हुए कुल 77 सीटें जीती थीं और राज्य में सरकार बनाई थी. कांग्रेस की जीत में किसानों का बड़ा योगदान था.
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2014 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो पंजाब की 13 सीटों में से आप ने 4 पर कब्जा किया था, जबकि 2019 के चुनावों में आप को सिर्फ एक सीट पर जीत मिल सकी. भगवा पगड़ी पहनकर और पंजाबी में भाषण देने के बावजूद पंजाबियों ने पीएम नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी व एनडीए गठबंधन को नकार दिया था. उन्हें मात्र चार सीटों पर ही जीत मिली.
आंकड़े बताते हैं कि पंजाब की 65 फीसदी आबादी ऐसी है, जो खेतीबारी और किसानी के काम से जुड़ी है. राज्य के कुल 1.90 करोड़ मतदाताओं में से 1.15 करोड़ कृषक हैं. इसके अलावा 117 विधानसभा सीटों में से 66 सीटें पूरी तरह ग्रामीण हैं, जहां किसानों की बहुलता है. राज्य में 30 लाख से ज्यादा खेतिहर मजदूर हैं.
ऐसे में, अब जब दो साल बाद फिर से राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं. किसानों के मुद्दे पर ही शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी का गठबंधन टूट चुका है, तब अरविंद केजरीवाल किसानों का साथ देकर एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिश कर रहे हैं. वो पंजाब-हरियाणा के किसानों की सहानुभूति बटोरकर उसे वोटबैंक बनाना चाह रहे हैं और सियासी रूप से अपनी पकड़ मजबूत करना चाह रहे हैं. साथ ही केंद्र की एनडीए सरकार की खिलाफत भी किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर करना चाह रहे हैं.
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