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This Article is From Nov 20, 2019

Ayodhya Case: रिव्यू पिटीशन पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में दरार, तमाम मेंबर कोर्ट में जाने के खिलाफ

बोर्ड के मेंबर और बड़े धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद ने मांग की है कि बोर्ड के अध्यक्ष अपना वीटो पावर इस्तेमाल करके रिव्यू पिटीशन फाइल होने से रोकें

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Ayodhya Case: रिव्यू पिटीशन पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में दरार, तमाम मेंबर कोर्ट में जाने के खिलाफ
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सेक्रेटरी जफरयाब जिलानी (फाइल फोटो).
लखनऊ:

अयोध्या (Ayodhya) के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका (Review Petition) फाइल करने के मुद्दे पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में दरार पैदा हो गई है. आम मुसलमानों के अलावा बोर्ड के तमाम मेंबर निजी तौर पर इसके खिलाफ हैं. बोर्ड के मेंबर और बड़े धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद ने मांग की है कि बोर्ड के अध्यक्ष अपना वीटो पावर इस्तेमाल करके रिव्यू पिटीशन फाइल होने से रोकें, क्योंकि बोर्ड ने ही ऐलान किया था कि सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला होगा वो मानेगा. मौलाना कल्बे जव्वाद देश के बड़े शिया मौलाना हैं. वे अयोध्या के मुक़दमे में मस्जिद की तरफ से गवाह भी रहे हैं. उनका कहना है कि पर्सनल लॉ बोर्ड का रिजोल्यूशन था कि सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला बोर्ड मानेगा. इसलिए अब फ़ैसले के खिलाफ रिव्यू दाखिल करना वादाखिलाफी है.

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पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना कल्बे जव्वाद ने कहा कि ''अब जब हमें यह बाइज्जत रास्ता मिल गया है और सुप्रीम कोर्ट के जरिए से मिल गया है यह रास्ता. और आप पहले फ़ैसला कर चुके थे कि जो सुप्रीम कोर्ट का आदेश होगा, फैसला होगा उस पर हम सर झुकाएंगे. उस पर हमको अमल करना चाहिए.''

मौलाना कल्बे जव्वाद कहते हैं कि ''अगर मुसलमान मुकदमा जीत भी जाएं तो वहां मस्जिद नहीं बना सकते. ऐसे में इस कदम से हिंदू-मुस्लिम खाई और बढ़ेगी.'' उन्होंने कहा कि ''फ़र्ज़ कीजिए कि मस्जिद के पक्ष में हो गया, तो क्या जमीयत-उलेमा वाले जाएंगे वहां मस्जिद बनाने के लिए? कोई ऐसा ऐलान करे, तब उनको रिव्यू में जाने की आज़ादी है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड वाले मौलवी जाएंगे वहां बनाने के लिए? पब्लिक को कटवा देंगे...मुसलमानों को कटवा देंगे और खुद घर में बैठे रहेंगे.''

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ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष मौलाना कल्बे सादिक इस उप महाद्वीप के सबसे बड़े मुस्लिम उलेमा में से एक हैं. वे कई साल से विवादित जमीन मंदिर के लिए देने के हिमायती रहे हैं. मौलाना कल्बे सादिक़ ने कहा कि ''मैंने कहा था कि एक प्लॉट अगर आप दे देंगे..एक मस्जिद आप दे देंगे..जो आपके पास नहीं रह सकती है..पता है कि वो नहीं रह सकेगी आपके पास..तो जो कल जाने वाली है..वो आज खुशी-खुशी आप दे दें. तो एक मस्जिद देने से आप करोड़ों दिल जीत लेंगे.''

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सूत्रों के मुताबिक बोर्ड की मीटिंग में तमाम सदस्य कॉन्स्टिट्यूशन बेंच के फ़ैसले के खिलाफ रिव्यू पिटीशन लगाने के खिलाफ थे. बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना राबे हसन नदवी ने कहा कि “हम पिछले 70 साल से इस मसले में उलझे हुए हैं. अब इससे बाहर निकालने की ज़रूरत है.'' मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि “रिव्यू पिटीशन से हमें कामयाबी की उम्मीद नहीं, लेकिन हम बोर्ड का फ़ैसला मानेंगे.''

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मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि “बोर्ड ने कहा था कि हम सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला मानेंगे. रिव्यू पिटीशन फाइल करना मुनासिब नहीं.” खालिद राशिद फिरंगीमहली ने कहा कि “अदालत ने माना है कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने के सुबूत नहीं मिले हैं. यह दाग हमारे ऊपर से मिट गया है. आज के माहौल में रिव्यू पिटीशन से खाई बढ़ेगी.''

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लेकिन पर्सनल लॉ बोर्ड की प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोर्ड ने ऐसे किसी भी मतभेद की पुष्टि नहीं की. पर्सनल लॉ बोर्ड के सेक्रेटरी जफरयाब जिलानी से यह पूछने पर कि कॉन्फ्रेंस में बोर्ड के 51 में से कितने मेंबर आए, उन्होंने कहा कि तकरीबन 35-40 मेंबर आए. उनसे पूछा कि क्या किसी ने असहमति जताई? तो उनका उत्तर था- ''देखिए रिजोल्यूशन युनानिमस है. और आपको अंदर की बात बताने की ज़रूरत नहीं है.''

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इस बात पर बहस ज़रूर होनी चाहिए कि क्या पर्सनल लॉ बोर्ड इस देश के सारे मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करता है? क्या पर्सनल लॉ बोर्ड जो सोचता है वही देश के सारे मुसलमान भी सोचते हैं? क्या तीन तलाक और अयोध्या मुद्दे पर जो पर्सनल लॉ बोर्ड की राय थी... इन दो मुद्दों पर क्या पर्सनल लॉ बोर्ड के कारण इस देश के मुसलमानों को शर्मिंदगी नहीं उठानी पड़ी?

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