West Bengal Loksabha Elections 2019: इन वजहों से पश्चिम बंगाल में दिखी मोदी लहर!

West Bengal Loksabha Elections 2019 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने इन वजहों से तृणमूल कांग्रेस के केंद्र के किले में लगाई सेंध...

West Bengal Loksabha Elections 2019: इन वजहों से पश्चिम बंगाल में दिखी मोदी लहर!

खास बातें

  • लोकसभा चुनाव 2014 में सिर्फ 2 सीटें जीती थी BJP
  • पश्चिम बंगाल में दो साल बाद होने वाले हैं विधानसभा चुनाव
  • सात चरणों में हुए थे पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव

लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजों ने एक बार फिर राजनीतिक पंडितों को पूरी तरह से चौंका दिया है। इनमें से सबसे चौंकाने वाला राज्य पश्चिम बंगाल निकला। वैसे भारतीय जनता पार्टी (BJP) शुरू से यहां पर 25 से ज़्यादा सीटों जीतने का दावा कर रही थी। भले ही नतीजे/ रुझान दावे के करीब नहीं है। लेकिन Loksabha Elections 2014 में मात्र 2 सीट जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी तृणमूल कांग्रेस (Trinamool Congress) के किले में बड़ी सेंधमारी करती दिख रही है। ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) को भरोसा था कि वह अपने किले को बचाकर केंद्र की राजनीति में एक मजबूत दावेदारी पेश करेंगी। लेकिन अगले पांच साल तक ऐसा नहीं होने वाला। Election Results 2019 ने अब हर किसी के मन में सवाल में उठा दिया है कि BJP के इस प्रदर्शन की वजह क्या है?

पश्चिम बंगाल लोकसभा चुनाव 2019 (West Bengal Loksabha Elections 2019) में नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के नेतृत्व में बीजेपी ने इन वजहों से तृणमूल कांग्रेस (Trinamool Congress) के किले में लगाई सेंध....

बंगाल में पांच साल बाद दिखा मोदी लहर का जलवा
तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी का सामना इस बार मोदी लहर से हो ही गया। और इस लहर में उनका किला पूरी तरह से ध्वस्त तो नही हुआ। लेकिन बीते लोकसभा चुनाव में 2 सीट जीतने वाली बीजेपी करीब 20 सीट के करीब पहुंच गई। इसे बड़ी सेंधमारी ही कहा जाएगा। पश्चिम बंगाल शुरू से बीजेपी और नरेंद्र मोदी के एजेंडे में था। 42 लोकसभा सीटों वाले इस राज्य में नरेंद्र मोदी ने कुल 17 रैलियां की। रैलियों में आने वाली भीड़ और प्रधानमंत्री को मिलने वाली प्रतिक्रिया से साफ था कि जमीन पर कुछ हो रहा था।

ममता बनर्जी पर तुष्टिकरण की राजनीति का आरोप
पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यकों की आबादी करीब 30 फीसदी है। ऐसे में बीजेपी शुरू से ही बंगाल को अपनी किस्म की राजनीति के लिए उर्वर जमीन मानती रही है। राष्ट्रीय पार्टी ने सबसे पहले ममता बनर्जी पर तुष्टिकरण की राजनीति करने का आरोप लगाया। उनका आरोप था कि ममता बनर्जी सिर्फ मुसलमानों की फिक्र करती हैं, हिंदुओं की नहीं। इमाम को पेंशन दिया जा रहा है। लेकिन हिंदु धर्म के पंडितों के लिए कुछ नहीं किया जाता। इनमें से सारे आरोप सही नहीं थे। लेकिन चुनावी राजनीति में माहौल बनाना बहुत अहम होता है जिसमें बीजेपी कामयाब हो गई।

चुपचाप कमल छाप
लेफ्ट को पश्चिम बंगाल की सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए ममता बनर्जी ने चुपचाप फूल छाप का नारा दिया था। इसी नारे को भारतीय जनता पार्टी ने अपना बना लिया। इस बार फूल छाप की जगह कमल छाप जुड़ गया। माना जात रहा है कि पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद अक्सर ही हिंसा होती है। खासकर चुनाव में अपनी पसंद की पार्टी को दिया गया वोट भी कई बार उन वोटरों के लिए ही जान का खतरा बन जाता है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी ने भी अपने समर्थकों को चुपचाप कमल के निशान पर वोट डालने के लिए प्रेरित किया। जो होता दिख रहा है।

ममता और तृणमूल विरोधी वोट गए बीजेपी के पाले में
बंगाल के पंचायत चुनावों में लोकसभा चुनाव 2019 में  भारतीय जनता पार्टी के प्रदर्शन का इशारा मिल गया था। यह साफ हो गया था कि राज्य में तृणमूल कांग्रेस को कोई पार्टी चुनौती दे सकती है, तो वह बीजेपी है। ऐसा होता देख ममता विरोधी वोटर भाजपा के पीछे लामबंद हो गए हैं। स्थिति ऐसी हो गई कि 2011 तक पश्चिम बंगाल पर राज करने वाली लेफ्ट पार्टियों के वोट भी बीजेपी को जाने लगे। अब भाजपा राज्य में मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई है।

जय श्रीराम पर राजनीति
पश्चिम बंगाल के दुर्गा पूजा दुनियाभर में मशूहर हैं। लेकिन इस बार लोकसभा चुनाव में राज्य के कई क्षेत्रों में जय श्रीराम का नारा सुर्खियों में रहा। बीजेपी की रणनीति साफ थी कि ममता बनर्जी को हिंदु-विरोधी दिखाया जाए और बीजेपी को हिंदुओं के हित में बात करने वाली पार्टी। नतीजे तो यही कह रहे हैं कि अमित शाह के नेतृत्व वाली पार्टी ऐसा करने में सफल रही। कुछ हद तक ममता बनर्जी ने भी बीजेपी की ही मदद कर डाली। कुछ बीजेपी समर्थकों द्वारा  दिए जा रहे इस नारे पर उनके गुस्से को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने चुनावी रैलियों में भी जमकर भुनाया।


सात चरणों में चुनाव
चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल को संवेदनशील मानते हुए सात चरणों में मतदान कराने का फैसला किया। यह फैसला बहुत हद तक भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में गया। क्योंकि इस राज्य में तृणमूल कांग्रेस की तुलना में बीजेपी के पास कार्यकर्ताओं कम हैं। ऐसे में जैसे-जैसे चरणबद्ध चुनाव खत्म हो गए। बीजेपी अपने संसाधनों को बाकी सीटों पर केंद्रित करने में सफल रही।

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